रामानुजाचार्य आदिशेष के अवतार थे। जब उनका नाम रखने का समय आया तो उनके मामा तिरुमलई नंबी ने उन्हें रामानुज नाम दिया। रामानुज की स्तुति में रामानुज नूतरंददी लिखने वाले तिरुवरंगथु अमुदनार का कहना है कि यह नाम रामानुज गायत्री मंत्र के 108 बार पाठ की पवित्रता के बराबर है। लक्ष्मण को रामानुज भी कहा जाता था, और वे आदिशेष के अवतार थे। इसलिए शेष के अवतार आचार्य को यह नाम दिया गया था। पीटी शेषाद्रि ने एक प्रवचन में कहा कि वैष्णव विद्वानों ने तीन बिंदुओं पर विस्तार से बताया है कि उनका नाम रामानुज क्यों रखा गया था।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में सर्ग 31, श्लोक 25 में लक्ष्मण राम से कहते हैं, “अहं सर्वं करिश्यामि (मैं आपकी हर तरह की सेवा करूंगा)।” इसी तरह रामानुज ने वेदांत के लिए कल्पनीय हर कार्य को सिद्ध किया। उनके लेखन और शिक्षाओं ने धर्मग्रंथों की अनुचित आलोचना को कुचलने में मदद की और विशिष्टाद्वैत को मजबूती से खड़ा किया।
इसके अतिरिक्त भगवान् कृष्ण को भी रामानुज के नाम से जाना जाता है क्योंकि वे बलराम के छोटे भाई (अनुज) हैं। यही कारण है कि कुलशेखर अज़वार ने अपनी मुकुंदमाला में भगवान् कृष्ण को “रामानुज, जगतरायगुरु” कहा है।
यह भी माना जाता है कि रामानुज का जन्म तिरुवल्लिकेनी के भगवान् पार्थसारथी के आशीर्वाद से हुआ था और इसलिए उन्हें रामानुज नाम दिया गया जो कि कृष्ण का नाम भी है। कलियुग में नम्माऴवार को राम का अवतार माना जाता है। इस कलियुग राम के लिए रामानुज का बहुत सम्मान था। इसलिए, यह उचित था कि उनका नाम रामानुज रखा जाए, अर्थात् राम (नम्माऴवार) के छोटे भाई। कूराताऴवान को आश्चर्य होता है कि उनके जैसे लोगों का क्या भाग्य होता यदि चार अक्षरों वाले रा-मा-नु-ज नाम का सहारा नहीं होता। रामानुज नाम संसार नाम के रोग की औषधि के समान है।
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