इसे एक महल कहा जाता है, हालांकि यह एक नहीं है। इसे परियों का निवास स्थान कहा जाता है, लेकिन यहां अगवा की गई राजकुमारियों को रखने वाले एक दुष्ट जादूगर की कहानियां हैं। परी महल, श्रीनगर में ज़बरवन पर्वत श्रृंखला पर बसा हुआ है, मूल रूप से बहुत कम रोमांटिक है - मुगल राजकुमार दारा शिकोह ने इसका निर्माण आध्यात्मिक वापसी के रूप में किया था।
परी महल और इससे जुड़े जादू-टोना के किस्से बताते हैं कि लोकस्मृति में आज भी इसके निर्माता दारा शिकोह की तरह यह आबाद है। यहाँ की कहानियाँ ऐतिहासिक कम और किंवदंती ज़्यादा हैं।

चूंकि सरकार ने दारा शिकोह की कब्र को देखने के लिए एक पैनल का गठन किया है, परी महल से जुड़े तथ्यों को जानना आवश्यक हो गया है।
परी महल सुंदर है। इमारत के खंडहर एक सात-सीढ़ीदार बगीचे में स्थापित हैं जिसमें पानी की टंकियाँ, एक बारादरी और कुछ कमरे विभिन्न छतों पर अलग-अलग हैं। बगीचे के पुराने मजबूत पेड़ों में मौसमी फूलों का बहार देखते ही बनता है।
मुग़ल राजकुमार दारा शिकोह ने अपने सूफी शिक्षक मुल्ला शाह अखुंद बदख्शानी के लिए खंडहर में तब्दील एक बौद्ध मठ के स्थल पर इसे बनाया था। मुल्ला शाह कादरी सूफी थे। दारा शिकोह मियाँ मीर के शागिर्द बनना चाहते थे लेकिन उनके निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी मुल्ला शाह उनके मुर्शीद बन गए। राजकुमारी जहाँआरा ने भी मुल्ला शाह को अपना मुर्शीद मान लिया।
कश्मीर विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त इतिहास के प्रोफेसर अशरफ़ वानी कहते हैं कि “शाही भाई-बहनों ने कश्मीर में मुल्ला शाह के लिए दो स्मारक बनवाए — हरि परबत की एक मस्जिद और परी महल।
परी महल का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया गया था, यह स्पष्ट नहीं है पर सभी मौजूदा साक्ष्य के आधार पर, जैसे पानी की टंकियाँ, कमरों की पंक्तियाँ आदि, से लगता है कि यह एक आध्यात्मिक स्थल था। दारा शिकोह की तुलनात्मक धर्म के अध्ययन में बहुत रुचि थी और परी महल में सभी धर्मों के मनीषी ध्यान लगाने आते थे।

दारा ने गर्मी के मौसम में तीन बार कश्मीर का दौरा किया। उन्होंने कई रचनाएँ लिखीं और कहा जाता है कि उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक मजमा-उल-बहरीन: The Mingling of Two Oceans of Sufism and Vedanta का एक भाग परी महल में लिखा गया था।
जीएमडी सूफी ने अपनी 1948 की पुस्तक Kashir: Being a History of Kashmir From the Earliest Times to Our Own के हवाले से परी महल के बारे में कहा, “खंडहर परी महल (या Fairy Palace) जिसे Quntilon भी कहा जाता है, ज़बरवान पर्वत के एक किनारे पर है। यह मुग़लों के साहित्य प्रेम को समर्पित स्मारक है। यह राजकुमार दारा शिकोह द्वारा अपने शिक्षक अखुंद मुल्ला मुहम्मद शाह बदख्शानी के नाम पर निर्मित सूफीवाद का एक आवासीय विद्यालय था।”

वर्तमान इतिहासकार परी महल को ज्ञान का केंद्र बताते हैं। डॉ साहिब ख्वाजा, जो कश्मीर विश्वविद्यालय के इतिहास के विद्वान हैं, कहते हैं: “दारा व्यापक विचारों वाला और जिज्ञासु विद्यार्थी था। उसके परिवार के बाकी सदस्यों ने कश्मीर में हरे-भरे बगीचे बनाए, उन्होंने सीखने का एक केंद्र बनाया, जहाँ विद्वान और संत विचारों का ध्यान और आदान-प्रदान कर सकते थे।”
तो फिर इस विद्या के केंद्र का नाम परी महल कैसे पड़ा? एक कहानी यह है कि इसका नाम दारा शिकोह की पत्नी परी बेगम के नाम पर रखा गया था। एक अन्य कथा के अनुसार इमारत को मूल रूप से ‘पीर (संत) महल’ कहा जाता था, बाद में बदलकर परी महल कर दिया गया।

वाल्टर आर लॉरेंस अपनी 1895 की पुस्तक The Valley of kashmir में लिखते हैं: “ ज़बानवान पर्वत के एक किनारे पर भव्य रूप से खड़े परी महल के खंडहर की तुलना में शायद कुछ भी अधिक रोचक नहीं है… परी महल के बारे में अजीब किस्से मशहूर हैं, जैसे एक दुष्ट जादूगर जो राजाओं की बेटियों को उनकी नींद में अगवा कर यहाँ ले आता था, फिर कैसे अपने पिता के आदेश से एक भारतीय राजकुमारी ने यहाँ एक चिनार का पत्ता छोड़ कर इशारा किया जिससे सभी राजाओं ने परी महल पर हमला कर जादूगर को गिरफ़्तार कर लिया।”

प्रोफेसर अशरफ वानी कहते हैं कि परी बेगम का कोई रिकॉर्ड नहीं है। उन्होंने कहा, “पीर महल का परी महल बन जाने का दावा भी सत्यार्पित नहीं है। शब्द ‘पीर’ इतना कठिन नहीं है कि लोक गाथा में वह ‘परी’ बन जाए। कश्मीर में हम कहते हैं कि परित्यक्त इमारतों पर राक्षसों का कब्जा है। शायद यही कारण है कि बर्बाद परिसर को ‘परी महल’ नाम मिला।”

परियों के निवास के रूप में अपने एकांत उद्यान में ‘परी महल’ को देखना एक सुंदर व कालातीत कहानी है। लेकिन विद्वत्तापूर्ण और अंतरविरोधी काम जटिल रूप से किया जाना शायद हमारे समय के लिए अधिक प्रासंगिक है।