दानिश सिद्दीक़ी जीवन भर हिंदुओं को आतंकी बताता रहा। जिस मोदी सरकार को वह फ़ासिस्ट बताता रहा, उस सरकार ने उसे कभी एक शब्द तक नहीं बोला बल्कि उसे समय-समय पर अवॉर्ड मिलते रहे। लेकिन जब दानिश का सामना अपने मज़हब के असली फ़ासिस्टों से हुआ तो दो दिन में ही उनको मार दिया गया।

अब लिबरल कह रहे हैं कि दानिश की मरने वाली तस्वीर को वायरल मत करो, ये ठीक नहीं होता। लेकिन दानिश सिद्दीकी ने क्या किया था?
दानिश कोरोनावायरस काल में श्मशान में जलती चिताओं की तस्वीरें वायरल कर रहे थे, ड्रोन से श्मशान में जलती चिताओं की ऐसी तस्वीरें उन्होंने पब्लिश की जिन्हें विदेशी मीडिया ने खूब भुनाया तथा भारत की छबि धूमिल करने की कोशिश की। तब किसी लिबरल ने दानिश को नहीं रोका था कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?
कोरोनावायरस ने तो सभी को मारा था लेकिन दानिश ने क़ब्रिस्तान में दफ़नाते लोगों की तस्वीरें कभी नहीं दिखाई। श्मशान भी उसने यूपी के चुने, किसी ग़ैर-भाजपा-शासित राज्य के नहीं।

वास्तव में दानिश पत्रकार का मुखौटा ओड़े एजेंडाबाज जिहादी था।
समाचार एजेंसी रॉयटर के लिए काम करने वाले भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीक़ी शुक्रवार को अफ़ग़ानिस्तान के कंधार प्रांत में अफगान सैनिकों और तालिबान आतंकवादियों के बीच भीषण लड़ाई की कवरेज करने के दौरान मारे गए।
एक अफ़ग़ान कमांडर ने रॉयटर को बताया कि अफ़ग़ानिस्तान के विशेष बल कंधार प्रांत के पास स्पिन बोलदाक के मुख्य बाज़ार इलाक़े को फिर से अपने नियंत्रण में करने के लिए संघर्ष में जुटे हुए थे, तभी सिद्दीक़ी और एक वरिष्ठ अफगान अधिकारी इसकी चपेट में आकर मारे गये।
बताया जा रहा है कि तालिबान की ओर से चली गोली लगने से उनकी मौत हुई। यह घटना कंधार प्रांत में पाकिस्तान से लगे एक बार्डर क्रॉसिंग के पास हुई।
रॉयटर के प्रमुख एम फ्रेडेनबर्ग और प्रधान संपादक एलेस्सांद्रा गलोनी ने एक बयान में कहा, ‘‘हमारे फ़ोटोग्राफ़र दानिश सिद्दीक़ी के अफ़ग़ानिस्तान में मारे जाने की ख़बर सुनकर हम बहुत दुखी हैं।’’ वह कंधार प्रांत में अफगान विशेष बलों के सुरक्षा घेरे में थे, तभी शुक्रवार सुबह उन पर हमला हो गया।
दानिश के लिए आठ-आठ आँसू बहाने वाले किसी नेता या पत्रकार ने अभी तक तालिबान की निंदा नहीं की।
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