केंद्र ने सोमवार को आरक्षण लाभ से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी से ‘क्रीमी लेयर‘ को अलैहदा करने के 2018 के सर्वोच्च न्यायालय के एससीएसटी एक्ट पर सुनाए गए फ़ैसले की समीक्षा की मांग की। केंद्र के शीर्ष क़ानून अधिकारी ऐटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष बहस करते हुए कहा कि 2018 में जरनैल सिंह मामले में पांच जजों की बेंच के फ़ैसले के औचित्य पर प्रश्न उठाना लाज़मी है।
वेणुगोपाल ने कहा, “हम चाहते हैं कि इस मामले को एक बड़ी बेंच सुने। इससे पहले यह पांच जजों की बेंच थी, लेकिन हम चाहते हैं कि मुआमला सात जजों की बेंच के समक्ष जाए। क्रीमी लेयर की अवधारणा को एससीएसटी श्रेणी के लिए लागू नहीं किया जा सकता है।”
अनुसूचित जाति या जनजाति के जो नागरिक अब तक आर्थिक रूप से सक्षम हो चुके हैं उन्हें समाज क्रीमी लेयर का दर्जा देता है हालांकि इस श्रेणी के प्रति अनुसूचित जातियों व जनजातियों को घोर आपत्ति है। एक तरफ़ जहाँ उच्च वर्ण के लोग मानते हैं कि सरकारी मदद का लाभ उठा चुके परिवारों को बारम्बार तंत्र से मदद नहीं मंगनी चाहिए, इसलिए भी क्योंकि और भी एससीएसटी वर्ग के लोग हैं जिन तक आरक्षण जैसी सुविधाएँ अभी पहुंची नहीं हैं, दूसरी तरफ़ एससीएसटी वर्ग के लोगों का कहना है कि उन्हें केवल आर्थिक रूप से नहीं बल्कि सामाजिक रूप से भी कई शताब्दी तक अवहेलित रखा गया और प्रताड़ित किया गया, इसलिए केवल एक पीढ़ी को आरक्षण मिल जाने से वे उच्च वर्ण के बराबर नहीं हो जाते।
आज कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार ने कहा किक्रीमी लेयर सिद्धांत वंचित वर्गों में संपन्न लोगों को अलग करता है, विशेष रूप से सामाजिक दृष्टिकोण से नौकरियों और प्रवेशों में आरक्षण के लिए इस सिध्धांत पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। क्रीमी लेयर केवल अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) पर लागू होना चाहिए।
ए-जी ने अदालत के समक्ष दलील दी कि पांच न्यायाधीशों की बेंच ने शायद इस बात पर गौर नहीं किया कि 2008 में सुप्रीम कोर्ट का एक और फ़ैसला आया था जिसमें यह तय हुआ था कि क्रीमी लेयर के सिद्धांत को एससीएसटी समुदाय पर लागू नहीं किया जाएगा, वेणुगोपाल ने इंद्रा साहनी मुआमले में अदालत के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा।
समता आंदोलन समिति का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने इस तर्क का विरोध किया। यह समिति राजस्थान में एससीएसटी समुदायों के सबसे निचले तबक़े का प्रतिनिधित्व करती है।
शंकरनारायण ने तर्क दिया कि जरनैल सिंह का फ़ैसला बहुत स्पष्ट था और उस मुआमले को दोबारा उछलने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने पीठ के समक्ष ज़ोर देकर कहा कि सर्वोच्च न्यायलय के फ़ैसले की समीक्षा हर साल नहीं की जा सकती और 2018 का निर्णय मलाईदार परत की अवधारणा पर स्पष्ट था, इसलिए इस पर पुनर्विचार अनुचित होगा।
अटॉर्नी जनरल ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि मुआमले पर नवीनतम निर्णय की जांच के लिए सात-न्यायाधीशों की एक पीठ गठित की जानी चाहिए। इस तर्क को सुन मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत इस मुआमले को दो सप्ताह बाद उठाएगी।
जरनैल सिंह मामले में पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि कोटा के सिद्धांत को लागू करने वाले संवैधानिक पीठ को यह अधिकार है कि आरक्षण का लाभ उठाने वाले समूहों या उप-समूहों से क्रीमी लेयर को बाहर रखे; यह समानता के सिद्धांत के अनुरूप होगा।
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