जबकि उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा और असम जैसे भाजपा-शासित राज्य लव जिहाद पर रोक लगाने के लिए क़ानूननून बनाने की सोच रहे हैं, क्या उत्तराखंड की भाजपा सरकार इसे बढ़ावा दे रही है? निम्नलिखित दस्तावेज़ पहले अंतर-जातीय विवाह के प्रचार की तरह दिखता है… और फिर पाठ में “मस्जिद” शब्द दिखाई देता है!

पहले से ही हिन्दू मंदिरों में सरकारी हस्तक्षेप से समुदाय के भाजपा वोटर काफ़ी नाराज़ है क्योंकि मंदिरों को मुक्त करने के विपरीत उत्तराखंड सरकार ने उन्हें अपने क़ब्ज़े में ले लिया है। इस 1636/सक/विवाह योजना/2020-21 संख्या के ‘समाज कल्याण’ आदेश से समुदाय में आक्रोश व्याप्त हो रहा है।
सिर्फ़ न्यूज़ द्वारा उत्तराखंड सरकार से संपर्क किए जाने पर उच्चस्थ अधिकारियों में से कुछ ने विषय पर अज्ञानता जताई और एक अधिकारी ने पूछा कि हिन्दू-मुस्लिम विवाह में ‘बुराई क्या है?’ गोपनीयता की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि ‘यदि आप कह रहे हैं कि ज़िला स्तर पर ऐसा प्रेस नोट जारी हुआ है तो पूछताछ की जायेगी’। ज़िम्मेदार अधिकारी पर कार्यवाही की जाएगी या नहीं पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि ‘जाँच के बाद ही बात स्पष्ट होगी’।
केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के बनने के बाद से यह लोगों को शिकायत रही है कि कांग्रेस के समर्थकों, वामपंथियों और लकीर के फ़क़ीरों से भरी कार्यपालिका पर भाजपा प्रशासन नियंत्रण नहीं कर पा रही है। शुरुआती दौर में एक मंत्रालय का दूसरे के ख़िलाफ़ कोर्ट में हलफ़नामा दायर करना इसका प्रमाण था। अब यह नियंत्रणहीनता देश भर में व्याप्त लगती है।
उत्तराखंड के सामाजिक कल्याण विभाग के अधिकारियों ने यहां बताया कि यह प्रोत्साहन राशि कानूनी रूप से पंजीकृत अंतरधार्मिक विवाह करने वाले सभी दंपत्तियों को दी जाती है। अंतरधार्मिक विवाह किसी मान्यता प्राप्त मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या देवस्थान में संपन्न होना चाहिए । उन्होंने बताया कि अंतरजातीय विवाह करने पर प्रोत्साहन राशि पाने के लिए दंपत्ति में से पति या पत्नी किसी एक का भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार, अनुसूचित जाति का होना आवश्यक है।
उधर टिहरी के ज़िला समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्डियाल ऐसे बयान दे रहे हैं मानो कि उन्होंने कोई महान कार्य सिद्ध कर लिया हो! उन्होंने प्रेस से बात करते हुए परसों कहा कि राष्ट्रीय एकता की भावना को जागृत रखने तथा समाज में एकता बनाए रखने के लिए अंतरजातीय एवं अंतरधार्मिक विवाह काफ़ी सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
घिल्डियाल के अनुसार ऐसे विवाह करने वाले दंपत्ति शादी के एक साल बाद तक प्रोत्साहन राशि पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद इससे संबंधित नियमावली को जैसे का तैसा स्वीकार कर लिया गया था जिससे अफ़सरों का लकीर के फ़क़ीर होने का संदेह सही साबित होता है.
ऐसे विवाह करने वाले दंपत्तियों को 10,000 रुपए दिए जाते थे। वर्ष 2014 में इसमें संशोधन कर इस प्रोत्साहन राशि को बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दिया गया। शेष नियम में कोई परिवर्तन नहीं लाया गया। मस्जिदों में उपरिलिखित नियमों का पालन करते हुए लव जिहाद की साज़िश के तहत भी शादियाँ हो सकती हैं! यही नियम उत्तर प्रदेश में भी लागू हैं।
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