दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) आजकल फिर से चर्चा में है। ताजा समाचारों के अनुसार शुक्रवार को विश्वविद्यालय परिसर से कोबरा प्रजाति के एक साँप को ‘बचाया’ गया। बताया जा रहा है कि जब बुधवार को पहली बार इस कोबरा को परिसर में देखा गया, तो इस कार्य के लिए वन्य-जीव संरक्षण की एक निजी संस्था से आग्रह किया गया था। गुप्त सूत्रों के हवाले से यह भी खबर आ रही है कि उस संस्था ने पहले ये सोचकर सहायता करने से मना कर दिया था कि यह देश के खिलाफ जहर उगलने वाले किसी छात्र की बात की जा रही है। पर जब उन्हें पता चला कि यह एक निरीह साँप है – जिसमें जहर तो भरा है, पर इतना नहीं कि भारत में ही पलकर भारत के टुकड़े होने के नारे लगा सके – तो उन्होनें उसकी सहायता करने का निर्णय लिया।
इस शुक्रवार को इस साँप को पकड़कर विश्वविद्यालय के बाहर किया है, जबकि पिछले शुक्रवार को तीन तथाकथित छात्र नेताओं पर जांच पूरी करके उनमें से एक को निष्काषित किया गया था – यह मात्र एक संयोग ही है। इस साँप के पकड़े जाने पर परिसर वासियों ने राहत की सांस ली, पर उन तथाकथित छात्र नेताओं पर नहीं। उनका मानना था कि उनपर जुर्माना करने की नहीं, सुधार गृह भेजने की आवश्यकता है। साँप को बचा तो लिया गया, पर यह अभी भी कौतूहल का विषय बना हुआ है कि आखिर साँप परिसर में कैसे, और क्या करने आया था!
हमने वन्य-जीव संरक्षण संस्था के विशेषज्ञों से इस विषय में बात की। उनका कहना था – “सही कारणों का पता तो अभी नहीं चल पाया है, पर शायद वह साँप यह सोचकर यहाँ आया था कि यह जगह जहरीले प्राणियों के लिए अत्यंत सुरक्षित है। दशकों से यह परिसर अलगाववादी गतिविधियों और बौद्धिक आतंकवाद का गढ़ रहा है। यहाँ भारत और लोकतंत्र विरोधी नारे लगना आम बात है, और भारतीय संस्कृति से लेकर धर्म तक सभी का मखौल अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर उड़ाया जाता रहा है। साँप जहरीले माहौल में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। साथ ही यहाँ ऐसी विभूतियों के संरक्षण के लिए प्रचुर संसाधन उपलब्ध है। मीडिया हो या विपक्षी राजनैतिक दल, बुद्धिजीवी हों या साहित्य जगत, सभी उनके बचाव में ऐसे कूद पड़ते हैं, जैसे वे छात्र न होकर नेहरू जी का चरित्र हैं। यहाँ तक कि कुछ अध्यापकों और प्राचार्यों का संरक्षण भी उन्हें प्राप्त होता है।”
पर प्रश्न यह उठता है कि यदि ऐसा ही था तो साँप बाहर खुले में क्यों आया, और इमारत में ही क्यों नहीं रह गया! यहाँ के छात्रावासों में तो वैसे भी वर्षों तक जनता के टैक्स के पैसे पर पलने की सुविधा है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोबरा एक खतरनाक किन्तु शर्मीली प्रजाति का साँप है। छात्रावास के अंदर चल रहे वैचारिक आतंकवाद को देखकर कोबरा को शर्म – जो उसमें अभी बाकी थी – आ गई, और वो बाहर जाने के लिए छटपटाने लगा। कुछ विशेषज्ञों को यह भी मानना था कि वह इस बात से आतंकित था कि कहीं कोई तथाकथित छात्र नेता उसे काट न ले। वहीं कुछ और विशेषज्ञों का कहना है कि सिगरेट और नशे की गंध के कारण वह कोबरा छात्रावास छोडने पर मजबूर हुआ।
कहा जा रहा है कि कोबरा को जंगल में छोड़े जाने से पहले कुछ समय निगरानी में रखा जाएगा। यह भी विश्लेषण किया जाएगा कि वह मानसिक तनाव में तो नहीं। फिलहाल इलाज के लिए कोबरा को डिटोक्स डाइट दी जा रही है, जैसे टमाटर का सूप और हरी सब्जियाँ। साथ ही उसको देशभक्ति की फिल्में दिखाई जा रही हैं, ताकि उसे ऐसा न लगे कि देश का संविधान खतरे में है और देश का विघटन होने वाला है। उसे न्यूज़ चैनलों से भी दूर रहने कि सलाह दी गई है। यह आशंका भी जताई जा रही है कि इस घटना के बाद क्या जंगल के कोबरा-समाज में उसे स्वीकृति मिलेगी? वैसे तो कोबरा पूरी तरह स्वस्थ है, पर अभी भी कभी-कभी नींद में कार्ल मार्क्स, माओ त्सेतुंग और व्लादिमीर लेनिन के नाम बड़बड़ाता हुआ पाया जाता है।