पिछले एक दशक में चीन ने एक वैकल्पिक ऑनलाइन वास्तविकता का निर्माण किया जहाँ Google और फ़ेसबुक मुश्किल से मौजूद हैं। अब अलीबाबा ग्रुप होल्डिंग लिमिटेड से लेकर टेनसेंट होल्डिंग्स लिमिटेड तक के सबसे बड़ी चीनी टेक कॉरपोरेशन्स को इस बात का अहसास हो रहा है कि ‘शटआउट’ के अस्ल में मानी क्या हैं। जब तक धड़ल्ले से ये सोशल मीडिया वाले दक्षिणपंथी यूज़र्स के पोस्ट्स अपनी-अपनी साइट से हटा रहे थे, तब इसका आभास उनको कहाँ हुआ होगा? चीन के 59 सबसे बड़े ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने का भारत का अभूतपूर्व निर्णय चीन के तकनीकी दिग्गजों के लिए एक चेतावनी है जो कई वर्षों से सरकार द्वारा लगाए गए महा-फ़ायरवॉल के पीछे पनप रहे थे, वही कुख्यात फ़ायरवॉल जिसकी वजह से अमेरिका की कई इंटरनेट-आधारित कंपनियों के लिए चीनी मार्किट में घुसना नामुमकिन था। यदि भारत इस फ़ायरवॉल को ध्वस्त कर सकता है तो यूरोप से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों के लिए एक मॉडल पेश कर सकता है जो अपने नागरिकों के अत्यधिक मूल्यवान डेटा की सुरक्षा करते हुए बाइटडांस लिमिटेड के टिकटॉक जैसे ऐप की व्यापकता को कम करना चाहते हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि चीन की इंटरनेट कंपनियों ने जिस तरह से दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते मोबाइल क्षेत्र में बढ़त बनाने की शुरुआत की, उसी तरह से वैश्विक और ख़ास कर अमेरिकी तकनीकी उद्योग के वर्चस्व को चुनौती देने का मार्ग प्रशस्त किया। TikTok ने वहाँ 20 करोड़ उपयोगकर्ता हथियाए हैं, Xiaomi Corp अब सबसे बड़ा स्मार्टफोन ब्रांड है और अलीबाबा तथा चीन की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी Tencent ने आक्रामक रूप से अपना विस्तार किया है।
29 जून को घोषित भारत की नई नीति चीनी कंपनियों की सभी सफलताओं को ख़तरे में डालती है जिसके व्यापक भू-राजनैतिक परिणाम हो सकते हैं जैसे कि अमेरिका का और बढ़-चढ़ कर सभी देशों पर दबाव डालना कि वे 5G नेटवर्क के लिए हुआवेई टेक्नोलॉजीज़ का इस्तेमाल न करें। जिस वक़्त चीन की टेक कंपनियाँ आर्टिफ़िशल इंटेलिजेंस जैसे उभरते उद्योगों में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही थी, भारत ने एक ऐसा क़दम उठाया कि अन्य कई देश अब सोचने पर मजबूर नहीं तो कम से कम प्रेरित अवश्य होंगे की अपने नागरिकों के डेटा वे किस हद तक चीनी कंपनियों से साझा करेंगे। अगर कई देशों ने चीन को अपने डेटा देने से इन्कार कर दिया तो इस अभाव से चीन का नए उद्योग में विकास ठप्प हो जायेगा।
हेनरिक फाउंडेशन के सिंगापुर-स्थित शोधकर्ता एलेक्स कैप्री ने कहा कि तकनीकी-राष्ट्रवाद भू-राजनीति के सभी पहलुओं में तेजी से प्रकट होगा — राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक प्रतिस्पर्धा, यहां तक कि सामाजिक मूल्य। चीनी तकनीकी फर्मों को देश की कम्युनिस्ट पार्टी और चीन की भूराजनैतिक महत्वाकांक्षाओं से अलग करना कठिन होगा। ऐसे में जगह-जगह इन कंपनियों का बहिष्कार होगा।
चीनी इंटरनेट कंपनियों ने अपने देश के बाहर अपनी ऑनलाइन सेवाओं को बढ़ाने के लिए लगातार संघर्ष किया है। इससे पहले भी वाशिंगटन के सांसदों ने एशियाई देशों द्वारा बाइटडांस जैसी कंपनियों को बहुमूल्य व्यक्तिगत डेटा प्राप्त करने की अनुमति देने के विषय पर सवाल उठाना शुरू कर दिया था। भारत ने टीकटॉक, टेनसेंट के वीवेट, अलीबाबा के यूसी वेब और Baidu इंक के नक्शे और अनुवाद सेवाओं सहित चीनी ऐप्स पर पाबंदी लगाने के साथ-साथ इन ऐप्स से अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को ख़तरे होने वाले पहलू पर भी रौशनी डाली है जिससे कई देशों की सरकारों में अब हड़कंप-सी मच गई है क्योंकि केवल किसी विशेषज्ञ द्वारा मामला उठाने और किसी देश की सरकार द्वारा सचेत करने में बहुत फ़र्क़ होता है। जिस विषय को दुनिया आज तक हलके में ले रही थी, रातोंरात गंभीर विषय में परिवर्तित हो गया है।
पहले तो ट्रम्प प्रशासन ने दुनिया भर को चीन और उसकी अग्रणी कंपनी हुआवेई के ख़िलाफ़ दुनिया भर में प्रचार किया, अब भारत के निषेध ने विश्व भर को यह सन्देश दिया है कि कोई साम्राज्यवादी देश स्वयं को भू-राजनैतिक तौर पर मज़बूत करने के लिए प्रौद्योगिक हथकंडों का उपयोग कर सकता है — जिससे बचना चाहिए। अक्सर युद्ध जैसी स्थिति तब बनती है जब देश का सर्वोच्च नेता अपने यहाँ उत्पन्न किसी विकट समस्या से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश करता है, पर अपने सैनिकों पर हमले के बाद हमलावर देश के 59 ऐप्स पर प्रतिबन्ध लगाने से घरेलू किसी मुद्दे से लोगों का ध्यान हटना संभव नहीं लगता, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह आरोप नहीं लग सकता। बल्कि युद्ध जैसी परिस्थिति में अतिरिक्त सावधानी बरतना ही भारत सरकार की सोच हो सकती है। अतः लद्दाख की स्थिति से अवगत विश्व अब मामूली से ऐप्स को राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संजीदा विषय से जोड़कर देखेगा।
लिंगनान यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर एशियन पैसिफिक स्टडीज़ के निदेशक झांग बाउहुई का मानना है कि बीजिंग को निश्चित रूप से चिंता करनी चाहिए कि उसके हमले ने भारत को अमेरिका के और नज़दीक धकेल दिया है। लेकिन चीनी सरकार की सोच इस वक़्त ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धिः’ वाली है। बीजिंग सोच रहा है कि भारत में उफान लेते राष्ट्रवाद का सामना कर रही मोदी सरकार को जनता की भावनाओं को शांत करने और अपनी वैधता बनाए रखने के लिए यह क़दम उठाना पड़ा।
वैसे यह स्पष्ट नहीं है कि भारत अपने फैसले को कैसे लागू करेगा। TikTok का उदाहरण लें तो भारत के प्रति छह लोगों में से एक के फ़ोन पर इसे डाउनलोड किया गया है और इनमें से अधिकांश सामान्य नागरिक हैं जिनके डेटा के लीक होने से हलचल नहीं मचनी चाहिए। लेकिन मोदी ने सिर्फ ऐप्स बैन नहीं किए। देश की सरकारी अधिप्राप्ति वेबसाइट ने चीन में निर्मित सामानों की ख़रीद पर रोक लगा दी है। अधिकारियों ने अमेज़ॅन डॉट कॉम और वॉलमार्ट की फ्लिपकार्ट सहित सभी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों को बेची गई वस्तुओं पर ‘country of origin’ अर्थात ‘मूल देश’ का लेबल लगाने का निर्देश दिया है। सूत्रों का कहना है कि भारत के बंदरगाहों से चीनी माल पास कराना अब दुश्वार हो गया है।
शंघाई में डिजिटल एशिया हब में अनुसंधानकर्ता डेव लुइस का कहना है कि भारत सरकार इंटरनेट के बारे में चीनी सरकार की तरह सोचती है जहाँ कि प्रौद्योगिकी को राष्ट्रीय सीमाओं में बांध कर रखना संभव होता है। यानी कि चीनी फ़ायरवॉल से जूझने के बाद अब दुनिया को भारतीय फ़ायरवॉल से भी जूझना पड़ेगा।
दुनिया के दो सर्वाधिक जनसंख्याओं वाले देशों से इस तरह से कट जाने पर एक नए विज्ञान का आरम्भ हो सकता है जहाँ इन्टरनेट-आधारित कम्पनियाँ ऐसी तकनीक के विकास में पैसे लगाए जिसपर किसी सरकार द्वारा लगाया गया प्रतिबंध कारगर नहीं होगा। चूँकि इस वक़्त भारत केवल चीनी कंपनियों को रोक रहा है, अमेरिकी कंपनियों द्वारा ऐसे विज्ञानं में निवेश करने की आवश्यकता नहीं है पर चीन की कम्पनियाँ ऐसी कोशिश अवश्य कर सकती हैं।
तात्कालिक व्यावसायिक परिणामों के संदर्भ में बाइटडांस सबसे ज़्यादा बदहाल हो सकता है। भारत 20 करोड़ से अधिक TikTok उपयोगकर्ताओं के साथ इसका सबसे बड़ा बाज़ार है या था। पिछले साल एक संक्षिप्त प्रतिबंध के दौरान एक चीनी कंपनी ने अनुमान लगाया था कि उसे पाँच लाख डॉलर के राजस्व का नुक़सान हुआ था। TikTok इंडिया के प्रमुख निखिल गांधी ने ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक बयान में कहा कि कंपनी भारतीय कानून के तहत सभी डेटा गोपनीयता और सुरक्षा आवश्यकताओं का अनुपालन करती है और कंपनी ने बीजिंग या किसी भी विदेशी सरकार के साथ किसी भी उपयोगकर्ता की जानकारी साझा नहीं की है। अब इसे कंपनी का गिड़गिड़ना कहें या सफ़ेद झूठ?
भारत का निषेध अमेरिकी कंपनियों को एक दुर्लभ वैश्विक टेक बाजार में चीनी खिलाड़ियों पर एक संभावित बढ़त दे सकता है। ध्यान रहे कि न चीन और न ही भारत का बाज़ार सैचुरेटेड (संतृप्त) है यानी कि अभी यहाँ और फैलने की काफ़ी संभावना थी जिस समय भारत ने चीनी कंपनियों का बेड़ा ग़र्क़ कर दिया। ऐसे में यहाँ अमेरिकी कम्पनियाँ स्थिति के बदलने तक बिना प्रतिस्पर्धा के फलेंगी-फूलेंगी। वहीं WeChat भारत में कभी बड़ा नहीं हुआ पर प्रतिबंध लगने के कारण अब फेसबुक के WhatsApp के न्यारे-न्यारे हो गए (वैसे Telegram भारत में मौजूद है पर कंपनी आक्रामक नहीं है)। TikTok का पत्ता साफ़ होने से अल्फाबेट इंक के YouTube को तुरंत बढ़ावा मिलता है।
मंगलवार को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि चीन भारत के इस प्रतिबंध से चिंतित है। उन्होंने कहा कि ‘भारत सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह चीनी लोगों सहित अंतररार्ष्ट्रीय निवेशकों के वैध और कानूनी अधिकारों को बनाए रखे’। लेकिन अभी के लिए चीन के पास जवाबी कार्रवाई करने के लिए कोई ख़ास विकल्प नहीं हैं क्योंकि किसी देश में सोशल मीडिया के ऐप्स को न चलने देना डब्ल्यूटीओ के किसी नियम का उल्लंघन नहीं करता। अगर करता तो गूगल, YouTube, ट्विटर इत्यादि पर पाबंदी के कारण चीन पर भी कार्रवाई हो सकती थी।
यूरेशिया ग्रुप के विश्लेषकों ने एक शोध नोट में लिखा है, ‘जबकि बीजिंग आर्थिक दबाव डालने में बहुत माहिर है, इस मामले में उसके पास कोई विशेष उपाय नहीं है। द्विपक्षीय व्यापार में भारत को चीन कहीं अधिक सामान निर्यात करता है जिसे अब तक भारत की कमज़ोरी माना गया। परंतु अब इससे भारत को लाभ हो रहा है क्योंकि जवाबी कार्रवाई में भारत के ख़िलाफ़ आर्थिक क़दम उठाने से चीन को ही ज़्यादा नुक़सान होगा।’
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