गोकरना— यूं तो पूरी दुनिया में बहुत सारे शिवलिंग हैं लेकिन उत्तरी कन्नड़ के गोकरना के महाबलेश्वर मंदिर में मौजूद भगवान शिव का आत्मलिंग अपने आप में अकेला है। इस आत्मलिंग को हासिल करने के लिए रावण ने कैलाश पर्वत पर कठोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने स्वयं अपने हाथ से यह आत्मलिंग रावण को दिया था। इस आत्मलिंग का दर्शन करने के लिए हर साल हजारों की संख्या में शिव भक्त पूरी दुनिया से यहां आते हैं। वोलिविया का रहने वाला रूद्र उनमें से एक है। वह हर साल यहां आता है और लगभग तीन महीने रहता है। इस दौरान वह हर रोज ओम नम: शिवाय मंत्र के साथ घंटों मंदिर के गर्भगृह में रखे आत्मलिंग की परिक्रमा करता है। रूद्र बताता है कि ऐसा करके उसे सीधे भगवान शिव से साक्षात्कार होने की अनुभूति प्राप्त होती है। इस आत्मलिंग से उसे आध्यात्मिक शक्ति हासिल होती है।
रुद्र का भगवान शिव के इस शिवलिंग की तरफ आकर्षित होने की कहानी भी काफी रोचक है। वह कहता है कि 9 साल की उम्र में उसे यूनान के देवी-देवताओं से संबंधित एक पुस्तक पढ़ने को मिली। उस पुस्तक ने उसे काफी प्रभावित किया। इसके बाद से वह दुनिया भर के देवी-देवताओं से संबंधित किताबें तलाश कर के पढ़ने लगा। इसी दौरान उसे हिन्दू देवी देवताओं के बारे में पता चला। उसे भगवान शिव और गोकरना में मौजूद उनके आत्मलिंग के बारे में भी बहुत सारी जानकारियां मिली। वह जितना आत्मलिंग के बारे में जानने की कोशिश करता उसकी प्यास उतनी ही बढ़ती जाती थी। फिर उसने आत्मलिंग के बारे में पुस्तकें पढ़ना छोड़ कर आत्मलिंग का स्मरण करते हुए ओम नम: शिवाय मंत्र की जाप करनी शुरु कर दी। इसका जादुई असर उस पर होने लगा और एक अजीब सी शक्ति उसे आत्मलिंग की ओर खींचने लगी। मंत्रोचारण की बारंबरता के साथ यह आकर्षण इतना अधिक बढ़ गया कि उसे बोलिविया छोड़कर हिन्दस्तान आने पर मजबूर होना पड़ा।
रुद्र कहता है कि पहली बार मैं 18 साल की उम्र में यहां आया था। उसके बाद से हर साल लगातार छह बार यहां आता रहा। कुछ समय के लिए यह सिलसिला टूट गया लेकिन बाद में फिर यहां आने लगा। फिजिकल फॉर्म में यह आत्मलिंग वाकई में अदभुत है, खास है और अपने आप में अनूठा है और सही मायने में यह शिव की आत्मा है। शिव का मतलब ही है देने वाला, धन-दौलत, सेहत सब कुछ उन्हीं से तो मिलता है।
रुद्र बोलिविया में एक शिव संत आश्रम भी चला रहे हैं। इस आश्रम में शिव भक्तों की भीड़ लगी रहती है। अपने आश्रम के बारे में वह बताते हैं जब मैंने शिव मंत्र का जाप करना शुरु किया था उसके कुछ दिन बाद से मेरे घर के कुछ सदस्य भी मेरे साथ जाप करने लगे और देखते देखते उनकी जिंदगी में सकारात्मक परिर्वतन होने लगे। बाद में बाहर के लोग भी इस जाप में शामिल होने लगे ओर इस तरह से शिव संत आश्रम की शुरुआत हुई। इस आश्रम के सभी लोग आत्मलिंग को ध्यान में रखकर जाप करते हैं।
यह पूछे जाने पर कि रुद्र के पहले उसके मां-पिता ने उसका क्या नाम रखा है? रुद्र कहता है, मैं अपने पुराने नाम को भूल चुका हूं।
इस मंदिर के पुजारी महाबलेश्वर गणपति कोंडलेकर बताते हैं कि रुद्र की तरह हजारों विदेशी शिव भक्त हर साल यहां आते हैं और अपने-अपने तरीके से आत्मलिंग की पूजा करते हैं। इस आत्मलिंग की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है। रावण ने कैलाश पर्वत पर कठिन तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे आत्मलिंग की मांग की थी। शिव ने खुद अपने हाथों से उसे आत्मलिंग दिया था और कहा कि इसे जहां स्थापित करना होगा वहीं जाकर रखना। एक बार जमीन पर रख देने के बाद यह दोबारा नहीं उठेगा। जिसके पास आत्मलिंग होता उसे कोई हरा नहीं सकता था।
रावण इस आत्मलिंग को लेकर लंका जा रहा था। तब देवताओं ने साजिश करके भगवान गणेश को रास्ते में खड़ा कर दिया और भगवान विष्णु ने दिन में सूर्य को ढंका दिया। सांध्य अर्चना करने के लिए रावण ने गणेश जी को आत्मलिंग देते हुए स्नान करने गया। गणेश जी ने उन्हें तीन बार आवाज दी और उसके नहीं आने पर आत्मलिंग यहीं जमीन पर रख दिया। आने के बाद रावण ने आत्मलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं उठा। तभी तो इसे महाबलेश्वर कहा जाता है। फिर गुस्से में आकर रावण ने गणेश जी के सिर पर मुक्के से प्रहार किया। गणेश जी के सिर पर आज भी रावण के मुक्के की निशानी है। आत्मलिंग के बगल में ही गणेश जी का भी मंदिर है।
आस्था : कहा जाता है कि तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं अपने हाथ से यह आत्मलिंग रावण को दिया था
हिन्दुस्थान समाचार