अभी-अभीटीवी पर श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्ष को नई दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते हुए देखा। साथ ही साथ यह भी पता चला कि कई लोग उनके भारत दौरे का विरोध कर रहे हैं। मेरा सवाल बिलकुल सीधा है, क्या एक ऐसे व्यक्ति का विरोध होना चाहिए, जिसने अपने देश से आतंकवाद का नामोनिशान मिटा दिया?
हो सकता है कि श्रीलंका सेना पर लग रहे मानवाधिकार उल्लंघन के कुछ आरोप सही हों, लेकिन अगर आप किसी भी देश में जाकर उसकी प्रभुसत्ता को चुनौती देंगे, उसके क्षेत्र पर अपना अधिकार जमाने की कोशिस करेगें, उसकी सीमाओं का उपयोग अपनी आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने के लिये करेंगे, तो वो क्या करेगा? हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहेगा, आतंक को सहता रहेगा? या फिर अपने देश से आतंकवादियों का सफ़ाया करेगा? दुनिया के किसी भी देश में मानवाधिकार को मानवों तक ही सीमित रखना चाहिए, और आतंक का नंगा नाच करने वाले दानवों के साथ वही सुलूक होना चाहिए जो वह बाकी लोगों के साथ करते हैं। आज वक़्त का तक़ाज़ा है कि हमें भी श्रीलंका सरकार से कुछ सीखना चाहिए, तभी हम इस देश से आतंकवादियों और नक्सलियों का सफ़ाया कर पायेंगे।
आख़िर किस मुँह से हम भारतीय एक ऐसे राष्ट्रपति का विरोध करते हैं जिस ने हमारे पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को मौत के मुँह में पहुँचाया? हम भारतीयों को यह याद रखना चाहिए कि उसी ‘लिट्टे‘ ने हमारे राजीव गाँधी की हत्या की थी, और उनके हत्यारों को सज़ा दिलाने में हमारी क़ानूनी और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से विफल रही है। हद तो तब हो गई जब पिछले वर्ष कुछ राजनैतिक पार्टियों ने बाक़ायदा उन हत्यारों को जेल से रिहा करवाने की कोशिशें शुरू कर दीं। क्या यह घटना नहीं दिखाती कि आख़िर इस स्तर की राजनीति इस देश को किस दिशा में ले जा रही है?
कुल मिलाकर हमारे हर सुख-दुख में हमारे साथ रहना वाला यह छोटा सा पड़ोसी देश हमसे एक बेहतर व्यवहार का हक़दार है।
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