आज प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के छात्रों, शिक्षकों और विद्वानों के नाम अपना सन्देश दिया। उनके द्वारा अनौपचारिक शैली में दिए हुए भाषण की प्रतिलिपि —
देशभर में, भिन्न-भिन्न स्कूलों में बैठे हुए और इस समारोह में उपस्थित, सभी प्यारे विद्यार्थी एवं दोस्तों,
मेरे लिए एक सौभाग्य की घड़ी है कि मुझे भारत के भावी सपने जिनकी आंखों में सवार हैं, उन बालकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है। आज शिक्षक दिवस है। धीरे-धीरे इस प्रेरक प्रसंग की अहमियत कम होती जा रही है। शायद, बहुत सारे school होंगे, जहां 5 सितंबर को इस रूप में याद भी नहीं किया जाता होगा। शिक्षकों को award मिलना, उनका समारोह होना, वहाँ तक ही ज्यादातर ये सीमित हो गया है। आवश्यकता है कि हम इस बात को उजागर करें कि समाज जीवन में शिक्षक का महात्म्य क्या है और जब तक हम उस महात्म्य को स्वीकार नहीं करेंगे, न उस शिक्षक के प्रति गौरव पैदा होगा, न शिक्षिक के माध्यम से नई पीढ़ी में परिवर्तन में कोई ज्यादा सफलता प्राप्त होगी। इसलिए इस एक महान परंपरा को समयानुकूल परिवर्तन कर के अधिक प्राणवान कैसे बनाया जाए, अधिक तेजस्वी कैसे बनाया जाए और इस पर एक चिंतन बहस होने की आवश्यकता है। क्या कारण है कि बहुत ही सामर्थ्यवान विद्यार्थी टीचर बनना पसंद क्यों नहीं करते? इस सवाल का जवाब हम सबको खोजना होगा।
एक वैश्विक परिवेश में ऐसा माना जाता है कि सारी दुनिया में, अच्छे टीचरों की बहुत बड़ी मांग है, अच्छे टीचर मिल नहीं रहे हैं। भारत एक युवा देश है। क्या भारत यह सपना नहीं दे सकता कि हमारे देश से उत्तम प्रकार के teachers export करेंगे और आज भी बालक हैं, उनके मन में हम इच्छा नहीं जगा सकतें कि मैं भी एक अच्छा teacher बन के देश और समाज के लिए काम आऊंगा, यह भाव कैसे जगे?
डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने एक उत्तम सेवा इस देश की की। वह अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। वे शिक्षक का जन्मदिन मनाने का आग्रह करते थे। यह शिक्षक दिवस की कल्पना ऐसे पैदा हुई है। खैर अब तो दुनिया के कई देशों में इस परंपरा को जन्म मिला है। दुनिया में किसी भी बड़े व्यक्ति से पूछिए, उनके जीवन में सफलता के बारे में, वह दो बातें अवश्य बताएगा। एक, कहेगा मेरी माँ का योगदान है। दूसरा, मेरे शिक्षक का योगदान है। करीब-करीब सभी महापुरुषों के जीवन में यह बात हमें सुनने को मिलती है, लेकिन यही बात हम जहाँ हैं, वहाँ हम सजगतापूर्वक उसको जीने का प्रयास करते हैं क्या?
एक जमाना था शिक्षक के प्रति ऐसा भाव था, यानी छोटा सा गाँव हो तो पूरे गाँव में सबसे आदरणीय कोई व्यक्ति हुआ करता था तो शिक्षक हुआ करता था। ‘नहीं मास्टर जी ने बता दिया है, मास्टर जी ने कह दिया है,’ ऐसा एक भाव था। धीरे-धीरे स्थिति काफ़ी बदल गई है। उस स्थिति को पुन: प्रतिस्थापित कर सकते हैं।
एक बालक के नाते आपके मन में काफ़ी सवाल होगें। आप में से कई बालक होंगे जिनको छुट्टी के दिन परेशानी होती होगी कि सोमवार कैसे आये और Sunday को क्या-क्या किया जाकर के teacher को बता दूँ। जो अपनी माँ को नहीं बता सकता, अपने भाई-बहन को नहीं बता सकता वो बात अपने टीचर को बताने के लिए इतना लालायित रहता हैं, इतना आपनापन हो जाता है, उसको और वही उसके जीवन को बदलता है, फिर उसका शब्द उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाता है।
मैंने कई ऐसे विद्यार्थी देखें हैं जो बाल भी ऐसे बनायेंगे जैसे उसका टीचर बनाता है, कपड़े भी ऐसे पहनेंगे जैसे उसका टीचर पहनता है, वो उनका हीरो होता है। यह जो अवस्था है, उस अवस्था को जितना हम प्राणवान बनाये, उतनी हमारी नयी पीढ़ी तैयार होगी।
चीन में एक कहावत है जो लोग साल का सोचते हैं, वो अनाज बोते हैं, जो दस साल का सोचते हैं, वो फलों के वृक्ष बोते हैं, लेकिन जो पीढि़यों का सोचते हैं वो इंसान बोते हैं। मतलब उसको शिक्षित करना, संस्कारित करना उसके जीवन को तैयार करना। हमारी शिक्षा प्रणाली को जीवन निर्माण के साथ कैसे हम जीवंत बनायें।
मैंने 15 अगस्त को एक बात कही थी हमारे देश में इस वर्ष मेरी इच्छा है कि जितने school हैं, उनमें कोई school ऐसा न हो जिसमें बालिकाओं के लिए अलग toilet न हो। आज कई school ऐसे हैं जहां बालिकाओं के लिए अलग toilet नहीं हैं। कुछ school ऐसे भी हैं जहाँ बालक के लिए भी नहीं, बालिका के लिए भी नहीं है। अब यूँ तो लगेगा कि ये ऐसा कोई काम है कि जो प्रधानमंत्री के लिये महत्वपूर्ण है, लेकिन जब मैं detail में गया तो मुझे लगा कि बड़ा महत्वपूर्ण काम है, करने जैसा काम हैं, लेकिन मुझे उसमें, जो देशभर के teacher मुझे सुन रहे हैं, मुझे हर school से मदद चाहिए, एक माहौल बनना चाहिए।
अभी मैं दो दिन पहले जापान गया था, मुझे एक भारतीय परिवार मिला लेकिन उनकी पत्नी जापानी हैं, पतिदेव Indian हैं; वो मेरे पास आकर बोले कि एक बात करनी है। मैंने कहा बताओ। बोले कि ‘आपका 15 अगस्त का भाषण भी सुना था आप जो सफ़ाई पर बड़ा आग्रह कर रहे हैं, हमारे यहाँ नियम है जापान में, हम सभी teacher और student मिलकर के school में सफाई करते हैं। Toilet वगैरह सब मिलकर सफ़ाई करते हैं और ये हमारा हमारे school में हमारे चरित्र निर्माण का एक हिस्सा है। आप हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं?’ मैंने कहा, मुझे जाकर मीडिया वालों से पूछना पड़ेगा, वरना ये 24 घंटे चल पड़ता है। मैंने क्योंकि एक दिन देखा था कि जब मैं गुजरात में था तो कार्यक्रम आ रहा था। कार्यक्रम यह था कि बच्चे school में सफ़ाई करते हैं, और क्या तूफ़ान खडा कर दिया था — ‘यह कैसा school है, यह कैसी मैनेजमेंट है, कैसे टीचर हैं, बच्चों पर दमन करते हैं’ — सब कुछ मैने देखा था एक दिन। खैर, मैंने उनसे तो मजाक कर लिया, लेकिन हम इसको एक राष्ट्रीय चरित्र कैसे बनायें और यह बन सकता और इसे बनाया जा सकता है।
दूसरा मैं देश के गणमान्य लोगों से भी आग्रह करना चाहता हूँ। आप doctor बने होंगे, वकील बने होंगे, engineer बने होंगे, IAS अफ़सर बने होंगे, IPS अफ़सर बने होंगे, बहुत कुछ होंगे। क्या आप अपने निकट के कोई school पसंद करके सप्ताह में ज्यादा नहीं, एक period, उन बच्चों को पढ़ाने का काम कर सकते हैं? विषय तय करें school के साथ बैठ कर के। आप मुझे बताइए? अगर हिंदुस्तान में पढ़े-लिखे लोग सप्ताह में, अगर एक पीरियड, कितने ही बड़े अफसर क्यों न बने हों, वह जाकर के बच्चों के साथ बितायें। उनको कुछ सिखाएँ।
आप मुझे बताइए शिक्षा में मान लीजिए कहीं शिकायत है कि शिक्षा में अच्छे टीचर नहीं हैं, ये फलना नहीं है, ढिकना नहीं है, इसको ठीक किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता है? हम राष्ट्र निमार्ण को एक जनांदोलन में परिवर्तित करें। हर किसी की शक्ति को जोड़े, हम ऐसा देश नहीं हैं कि जिसको इतना पीछे रहने की जरूरत है। हम बहुत आगे जा सकते हैं और इसलिए हमारा राष्ट्रीय चरित्र कैसे बने, इस पर हम लोगों का कोई emphasis होना चाहिए, प्रयास होना चाहिए। और हम सब मिलकर के करेंगे। इसको किया जा सकता है।
एक विद्यार्थी के नाते आपके भी बहुत सारे सपने होंगे। मैं नहीं मानता हूँ जिंदगी में परिस्थितियाँ किसी को भी रोक पाती हैं, नहीं रोकती हैं। अगर आगे बढ़ने वालों के इरादों में दम हो और मैं मानता हूं, इस देश के नौजवानों में, बालकों में वो सामर्थ्य है। उस सामर्थ्य को लेकर के वो आगे बढ़ सकते हैं।
Technology का महात्म्य बहुत बढ़ रहा है। मैं सभी शिक्षकों से आग्रह करता हूँ। कुछ अगर सीखना पड़े तो सीखें। भले हमारी आयु 40-45-50 पर पहुंचे हों, मगर हम सीखें। और हम जिन बालकों के साथ जी रहे हैं, जो कि आज technology के युग में पल रहा है, बढ़ रहा है, उसे उससे वंचित ना रखें। अगर हमें उसे वंचित रखेंगे तो यह बहुत बड़ा crime होगा, it’s a social crime. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि आधुनिक विज्ञान, technology से हमारे बालक जुड़ें। वह विश्व को उस रूप में जानने के लिए उसको अवसर मिलना चाहिए। यह हमारी कोशिश रहनी चाहिए।
मैं कभी-कभी बालकों से पूछता हूँ; आपको भी एक सवाल पूछना चाहता हूँ। जवाब देंगे आप लोग? देंगे? अच्छा, आपमें से कितने बालक हैं, जिनको दिन में 4 बार भरपूर पसीना निकलता है शरीर से? कितने हैं? नहीं है न? देखिए जीवन में खेल कूद नहीं है तो जीवन खिलता नहीं है। यह उम्र ऐसी है, इतना दौड़ना चाहिए, इतनी मस्ती करनी चाहिए, इतना समय निकालना चाहिए, शरीर में कम से कम 4 बार पसीना निकलना चाहिए। वरना क्या बन जाएगी जिंदगी आपकी। करोगे, पक्का? क्योंकि देखिए आप तो किताब, टीवी और कंप्यूटर, इस दायरे में जिंदगी नहीं दबनी चाहिए। इससे भी बहुत बड़ी दुनिया है और इसलिए ये मस्ती हमारे जीवन में होनी चाहिए। आप लोगों में से कितने हैं जिनको पाठ्यक्रम के सिवाय किताबें पढ़ने का शौक है? चलिये बहुत अच्छी संख्या में है। ज्यादातर जीवन चरित्र पढ़ने का शौक है, ऐसे लोग कितने हैं? वो संख्या बहुत कम है। मेरा विद्यार्थियों से आग्रह है, जिसकी जीवनी आपको पसंद हो, जीवन चरित्र आपको पढ़ना चाहिए। जीवन चरित्र पढ़ने से हम इतिहास के बहुत निकट जाते हैं। क्योंकि उस व्यक्ति के बारे में जो भी लिखा जाता है, उसके नजदीक के इतिहास को हम भली भाँति जानते हैं।
कोई जरूरी नहीं है कि एक ही प्रकार के जीवन को पढ़ें, खेल-कूद में कोई आदमी आगे बढ़ा है तो उसका जीवन चरित्र है, तो वो पढ़ना चाहिए। सिने जगत में किसीने प्रगति की है, उसका जीवन पढ़ने को मिलता है तो वो पढ़ना चाहिए। व्यापार जगत में किसी ने प्रगति की है, उसका जीवन चरित्र मिलता है तो इसको पढ़ना चाहिए। साइंटिस्ट के रूप में किसी ने काम किया है तो उसका जीवन पढ़ना चाहिए, लेकिन जीवन चरित्र पढ़ने से हमें इतिहास के काफ़ी निकट और by and large सत्य को समझने की भी सुविधा पड़ती है।
इसलिए हमारी कोशिश रहनी चाहिए, वरना आजकल तो, आप लोगों को वो आदत है, पता नहीं, हर काम Google गुरु करता है। कोई भी सवाल है, Google गुरु के पास चले जाओ। Information तो मिल जाती है, ज्ञान नहीं मिलता है, जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए हम सब उस दिशा में प्रयास करें।
मुझे बताया गया है कि कुछ विद्यार्थियों के मन में कुछ सवाल भी हैं। तो मुझे अच्छा लगेगा, उनसे गप्पें-गोष्ठी करना। बहुत हल्का-फुल्का माहौल बना दीजिए, ज्यादा गंभीर रहने की जरूरत नहीं है। आपके शिक्षक लोगों ने कहा होगा, ‘हाय ऐसा मत करो, यूँ मत करो,’ ऐसे सब कहा होगा ना? हाँ। तो आपको शिक्षक ने जो कहा है, यहां से जाने के बाद उसका पालन कीजिए। अभी हंसते-खेलते आराम से बैठिए, फिर हम बातें करेंगे।
फिर एक बार आप सबको मेरी बहुत शुभकामनाएँ। Teachers’ Day पर देश के सभी शिक्षकों को मैं प्रणाम करता हूँ, शुभकामनाएँ देता हूँ और हम जैसे अनेकों के जीवन को बनाने में शिक्षकों का बड़ा रोल है, सबका ऋण स्वीकार करता हूँ।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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