वस्त्र राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार ने आज मणिपुर की राजधानी इम्फाल में रेशम उत्पादन की दो योजनाओं का शुभारंभ किया।
मणिपुर के घाटी जिलों के लिए रेशम उत्पादन परियोजना का दूसरा चरण
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय ने पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र प्रोत्साहन योजना (एनईआरटीपीएस) के अंतर्गत मणिपुर रेशम उत्पादन परियोजना के दूसरे चरण को मंजूरी दी है। यह परियोजना 2014-15 से 2016-17 तक तीन वर्ष की अवधि के लिए शहतूत रेशम उत्पादन विकास कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए मंजूर की गई है। इसकी कुल लागत 149.76 करोड़ रुपये है जिसमें से 126.60 करोड़ रुपये की मंत्रालय की हिस्सेदारी है। 2014-15 हेतु केंद्र से राज्य के लिए 30.08 करोड़ रूपये पहले ही दे दिए गए है। मणिपुर सरकार के रेशम उत्पादन विभाग ने परियोजना क्षेत्र में 11.69 लाख डीएफएलएस शहतूत की झाड़ियां तैयार की और करीब 25 हजार किसानों ने 52 किग्रा. प्रति 100 डीएफएलएस की उत्पादकता की मौजूदा औसत उपलब्धता के साथ 615.45 एमटी कच्चे रेशम के कोवे (ककून) का उत्पादन किया।
परियोजना की अवधि के दौरान 159.38 करोड़ रुपए की कीमत का 638 एमटी मलबरी रॉ सिल्क के उत्पादन की आशा है। पूरी क्षमता हासिल करने के बाद इस परियोजना से प्रतिवर्ष 203 एमटी मलबरी रॉ सिल्क का उत्पादन होगा जिसका वर्तमान मूल्य 50.62 करोड़ रुपए है।
मणिपुर के पहाड़ी जिलों के लिए एकीकृत रेशम उत्पादन विकास परियोजना

वस्त्र मंत्रालय ने एनईआरटीपीएस के अंतर्गत मणिपुर के पहाड़ी जिलों में 2014-15 से 2016-17 तक तीन वर्ष की अवधि के लिए ईरी और शहतूत विकास के लिए परियोजना को मंजूरी दी है। इसकी कुल लागत 30.39 करोड़ रुपये है जिसमें से 24.67 करोड़ रुपये मंत्रालय का हिस्सा है।
इस परियोजना अवधि के दौरान 1400 लाभार्थियों के सहयोग से 29 एमटी मलबरी रॉ सिल्क और 38 एमटी ईरी स्पन सिल्क के उत्पादन की आशा है। पूरी क्षमता हासिल करने के बाद इस परियोजना से प्रतिवर्ष 20.60 एमटी मलबरी रॉ सिल्क और 31 एमटी ईरी स्पन सिल्क का उत्पादन होगा।
इस परियोजना से लाभार्थियों और सरकार के बीच की खाई को पाटने और उनके स्तर पर तैयार किए गए ढांचे का अधिक से अधिक उपयोग करने में मदद मिलेगी। लाभार्थियों को पौधें तैयार करने, पालन गृह बनाने, खेती और पालने के उपकरण, प्रशिक्षण इत्यादि में सहायता दी जाएगी जिससे प्रत्येक किसान मलबरी ककून बेचकर औसतन प्रतिवर्ष 45000 रुपये प्रति एकड़ कमा सकता है और 36000 रूपये प्रति एकड़ प्रतिवर्ष प्रति किसान ईरी उत्पादन से कमा सकता है। यह कृषि के जरिए उनकी नियमित आय से अतिरिक्त होगी।
रिलिंग, ट्वीस्टिंग, कताई, डिजाईन तैयार करने और बुनाई के लिए चॉव्की पालन केंद्र और सामान्य सुविधा केंद्र जैसी समूह आधारित गतिविधियों से परियोजना क्लस्टरों के बीच आवश्यक संबंध बढ़ाने और मार्केटिंग के लिए ममद मिलेगी। परियोजना के पूरा होने के बाद रेशम के कीड़ों के बीज और परियोजना के दौरान तैयार किया गया मार्केटिंग सहयोग जारी रखना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस परियोजना से उन लोगों के लिए स्थानीय रोजगार भी पैदा करने में मदद की जानी चाहिए जो नियमित अंतराल पर शहरी क्षेत्रों में प्रवास करते है।
योजना का शुभारंभ करते हुए वस्त्र मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य़ों के प्रति विशेष लगाव है। वस्त्र मंत्रालय यहां वस्त्र क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न परियोजनाएं कार्यान्वित कर रही है।
गंगवार ने पूर्वोत्तर में वस्त्र उद्योग के सभी वर्गो के विकास के प्रति उनके मंत्रालय की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा मंत्रालय भारतीय वस्त्र क्षेत्र के कामगारों को उनके समृद्ध सांस्कृतिक उत्पादों की उचित कीमत दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने आश्वासन दिया कि देश में वस्त्र क्षेत्र की मजबूती के लिए सभी हितधारकों आवश्यक सहयोग दिया जाएगा।
वस्त्र सचिव डॉ. एस. के. पांडा ने कहा कि मंत्रालय ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों पर अधिक से अधिक ध्यान देने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि वस्त्र क्षेत्र में आय और बढ़ाने की बड़ी संभावना है।
विजयलक्ष्मी कासोटिया, पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार
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