उत्पादन और मूल्य-जोख़िम किसानों की आय पर प्रभाव डालते हैं, जिससे उन्नत फ़सल क़िस्मों, उत्पादन की तकनीकों और कृषि क्षेत्र में पूंजी निर्माण में निवेश की उनकी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अहमदाबाद में कृषि आय बीमा योजना की अवधारणाओं पर आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि कृषि मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करती है, जिससे कृषि उत्पादन और कृषि उत्पादों के मल्यों में अनिश्चितता को बढ़ावा मिलता है।
सरकार कृषि आय बीमा योजना शुरू करने पर विचार कर रही है, ताकि इन दो महत्वपूर्ण घटकों — अर्थात उत्पादन और क़ीमत — को एक ही नीति साधन के तहत हल किया जा सके। इस योजना का उद्देश्य किसानों को उनके कृषि उत्पादन और बाज़ार जोख़िमों के लिए बीमा देकर सुरक्षा प्रदान करना है। योजना का उद्देश्य सतत उत्पादन सुरक्षित करना, जीविका और फ़सलों की सुरक्षा, फ़सलों की बहुलता को प्रोत्साहन देना हैं, जिससे निर्यात की दृष्टिकोण से प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन मिल सके।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान कृषि परिदृश्य में आए बड़े परिवर्तन का उल्लेख करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि 2013-14 के दौरान खाद्यान्न उत्पादन 264.38 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचा है। यह गर्व की बात है कि आज हम अपनी खपत की आवश्यकता से अधिक उत्पादन कर रहे है। यहाँ तक कि पिछड़े माने जाने वाले राज्य भी अधिक खाद्यान्न का उत्पादन कर रहे हैं। वर्ष 2013-14 के दौरान देश ने 2.41 लाख करोड़ रूपये मूल्य का कृषि उत्पादों का निर्यात किया है। देश 13वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 4% की लक्षित विकास दर से अधिक विकास दर पाने की उम्मीद करता है।
सिंह ने कहा कि हम गोदामों की भंडारण क्षमता संबंधी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और सरकारी ख़रीद करने वाली एजेंसियां — जैसे भारतीय खाद्य निगम — को वित्तीय एवं ढांचागत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह किसानों को मात्र सब्सिडी दिये जाने से उनकी उपयुक्त आय सुनिश्चित करने की गारंटी नहीं दी जा सकती है। कृषि उत्पादों तथा प्रसंस्करण तकनीक में सुधार के बेहतर प्रबंध से किसानों के लिए अच्छी कीमतें सुनिश्चित की जा सकती हैं और वे भी इसमें योगदान दे सकते हैं।
मंत्री महोदय ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं से किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए सरकार 1985 से ही राष्ट्रीय स्तर पर फ़सल बीमा योजना क्रियान्वित कर रही है। कृषि बीमा योजना के क्रियान्वयन तथा राज्य सरकारों और हिस्सेदारों से विचार-विमर्श से प्राप्त अनुभव के आधार पर एक संशोधित योजना पर विचार किया जा रहा है, जो किसानों की आवश्यकताओं के लिए और अनुकूल साबित हो सकती है। वर्ष 2003-04 राबी वाले मौसम में कुछ राज्यों तथा ज़िलों ने एक योजना शुरू की थी, जिसमें किसानों के लिए यह सुनिश्चित किया गया था कि अगर उनकी फ़सलों से उन्हें कम आमदनी होती है, तो वे मुआवज़े के हक़दार होंगे। हालांकि यह योजना केवल गेहूँ और धान की फ़सलों पर ही लागू थी और इसे आगे क्रियान्वित नहीं किया जा सका।
मौजूदा सरकार ने किसानों की आमदनी की रक्षा करने के लिए सभी राज्यों से बीमा योजनाओं के लिए सुझाव मांगे हैं, ताकि पहले जिन दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा था, उनका निराकरण किया जा सके। इस संबंध में 14 अगस्त को मंत्रालय के अधिकारियों ने सभी राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श किया।
उन्होंने उम्मीद जताई कि संगोष्ठी के दौरान जिन मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया, उनके ठोस सुझाव सामने आएंगे, जो किसानों की कृषि आय बीमा योजना की तैयारी की दिशा में अहम मददगार साबित होंगे।
You must log in to post a comment.