नई दिल्ली — जल जन जोडो अभियान के तत्वाधान में 22, 23 सितम्बर को दिल्ली के बाल भवन के मेखना सभागार में ‘नीर नारी नदी सम्मेलन’ का आयोजन किया गया, जिसके प्रथम दिवस मुख्य अतिथि महाराष्ट्र सरकार के वन एवं वित्तमंत्री सुधीर मुनगुंटीवार ने कहा कि दुनिया में चन्द्रमा और मंगल पर जल की खोज के लिए हजारो करोडो रूपये खर्च किया जा रहा है, जबकि स्थानीय स्तर पर पानी बचाने के लिए गंभीर पहल नहीं की जा रही है, महाराष्ट्र में जल जन जोडो अभियान ने नई चेतना जाग्रत की है, जिससे महाराष्ट्र में जल संचयन का काम तेज़ी से बढ़ा है। उन्होंने कहा कि जलयुक्त सिवर कार्यक्रम देश में एक उदाहरण बना हुआ है इतिहास भी इस बात का गवाह है कि जो राजा जल, ज़मीन, जलवायु की चिन्ता करता है उसे प्रकृति भी भर-भर के देती है और जो इस तरफ ध्यान नहीं देता हैं, उसे राज्य में दुर्दिन देखना पडते हैं। जिस तरह से पानी का बाजार खडा किया जा रहा हैं, वह आने वाले भविष्य की सबसे बडी चुनौती होगी।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश शासन के सिंचाई विभाग के गंगा प्रोजेक्ट के मुख्य अभियंता एस० के० शर्मा ने कहा कि जब तक नदियों में जल का प्रवाह नहीं बढेगा, तब तक नदियों की निर्मलता कायम नहीं होगी, गंगा में आठ हजार क्यूसिक पानी का प्रवाह होना चाहिये जबकि आज छह सौ क्यूसिक पानी छोडा जा रहा है। ऋषिकेश के बाद गंगा अपने मूल स्वरूप को खो चुकी हैं, आज देश में झरनो से निकलने वाली नदियां भी लुप्त हो गयी हैं।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता डाॅ० एस० एन० सुब्बाराव ने कहा कि देश में विकास के नाम पर विनाश को आमंत्रित किया जा रहा है। इसके फलस्वरूप गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती जा रही हैं। सबको मिलकर काम करने की ज़रूरत है। सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि देश में अकाल एवं बाढ़ की समस्या के हल निकालने के लिए सरकारे गंभीर नहीं हैं सरकार के स्तर पर संवाद की प्रक्रिया को बढाने की आवश्यकता है। जिस तरह से प्राकृतिक आपदायें बढ़ रही हैं, उसके अनुरुप शासकीय और गैरशासकीय हस्तक्षेप दिखाई नहीं दे रहे हैं। देश में ज़मीन और जंगल की लड़ाई लडने वाले एकता परिषद के संस्थापक पी० वी० राजगोपाल ने कहा कि जल, जंगल, ज़मीन बचाना चाहिए, इनके संरक्षण की बात करने वालों की सरकारें सुनती नहीं है। सरकारी संरक्षण में नैसर्गिक सम्पत्ति की लूट शुरु है और सरकारें आराम से सो रही हैं। विकास के नाम पर जल, जंगल और ज़मीन को लोगों से छीना जा रहा है। इसलिए समाज में संघर्ष बढ़ रहा है। भविष्य में अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो सामाजिक संघर्ष के खतरे और बढे़ंगें। जल जन जोडो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने बताया कि इस दो दिवसीय सम्मेलन में देश के बीस राज्यों के एक सैंकडा से अधिक नदियों के संरक्षण पर कार्य करने वाले तीन सौ से अधिक सामाजिक कार्यकर्ता भाग ले रहे हैं, इनमें गंगा, यमुना, चम्बल, केन, दसान, पहूज, बेतवा, हिंडन, कोसी, सरस्वती, आमी, गण्डक, घाघरा, सरयू, साबी, गोमती, झेलम, चन्द्रावल, लखेरी जैसी नदियां प्रमुख हैं।
महाराष्ट्र से आई लोक संघर्ष मोर्चा की प्रमुख प्रतिभा शिंदे ने कहा कि सामुदायिक वनअधिकार के तहत् उन्होनें महाराष्ट्र के नंदूरवार, धूले, जलगांव जिले के 230 गांवों में वनपुर्नजीवन का कार्य सामुदायिक सहयोग से किया है, जिसके तहत् इन क्षेत्रों के वन जीवित हुए। राजस्थान के कोटा से आए जल बिरादरी के कार्यकर्ता बृजेश विजयवर्गीय ने कहा कि चम्बल शुद्धिकरण योजना ठप्प हो गई है, इस पर पुनः काम शुरु करना चाहिए। नमामि गंगें योजना में चम्बल के शुद्धिकरण का प्रयास प्रमुखतः से करना चाहिए। चम्बल यमुना की प्रमुख सहायक नदी है, जो उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पचनद क्षेत्र में मिलकर यमुना को नया जीवन देती है। बिना चम्बल के शुद्धीकरण के न तो यमुना शुद्ध होगी और न ही गंगा। गोरखपुर के जलकर्मी विश्वविजय सिंह ने कहा कि नदियों के पुर्नजीवन को लेकर जिस तरह से सरकारें मज़ाक़ कर रही हैं, उसे अब बहुत दिनों तक बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सम्मेलन के प्रथम दिवस जल एवं पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित तीन सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें विश्वनाथ पाटिल, कर्नाटक, भाग्या, कर्नाटक, विष्णुप्रिया, उडीसा, संध्या नामदेव, बुन्देलखण्ड, सुनीला भण्डारी, उत्तराखण्ड, मनीष राजपूत, एकता परिषद, सुनील जोशी, महाराष्ट्र, कृष्णपाल, विनीता यादव, संध्या, डॉ० मुहम्मद नईम, मेजर हिमांशु, डॉ० विनोद मिश्रा आदि ने अपने विचार रखे। सम्मेलन के प्रारम्भ में बुन्देलखण्ड के जलकर्मियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये।