केन्द्रीय ग्रामीण विकास तथा स्वच्छ जल और स्वच्छता मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि 2019 तक सभी के लिए स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करने में विभिन्न श्रेणियों के ग्रामीण शौचालय बनाने के लिए उन्होंने धन बढ़ाने के उद्देश्य से एक कैबिनेट नोट तैयार किया है। आज यहाँ स्वच्छता तथा पेयजल पर राष्ट्रीय कार्यशाला में गडकरी ने कहा कि घरेलू शौचालयों के लिए राशि रु० 10,000 से बढ़ाकर रु० 15,000 की जाएगी, स्कूल शौचालयों के लिए रु० 35,000 की जगह रु० 54,000 दिये जाएगें। इसी तरह आंगनबाड़ी शौचालयों के लिए रु० 8,000 की जगह रु० 20,000 दिये जाएंगे तथा सामुदायिक स्वच्छता परिसरों के लिए रु० 2 लाख की जगह रु० 6 लाख देने का प्रस्ताव है। गडकरी ने यह भी कहा कि ग्रामीण इलाकों में शौचालय बनाने के काम को मनरेगा से अलग कर दिया जाएगा।
उन्होंने तेज़ी से सरकारी निर्णय लेने पर बल दिया और समाज के सभी वर्गों से सहयोग मांगा ताकि अगले 4½ वर्षों में भारत को गंदगी मुक्त बनाने के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। उन्होंने कार्यशाला में शामिल राज्यों के मंत्रियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों से संघीय भाव से काम करने को कहा ताकि 2019 तक स्वच्छ भारत बनाने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परियोजना लक्ष्य को हासिल किया जा सके।
गडकरी ने इस बात की आवश्यकता पर ज़ोर दिया कि शौचालय बनाने में गुणवत्ता हो तथा कम लागत की तकनीक का इस्तेमाल हो ताकि शौचालय 30 से 40 वर्ष तक टिकें। पेयजल की समस्या — विशेषकर आर्सेनिक, अत्यधिक फ़्लोराइड, भारी धातु तथा अन्य प्रदूषकों वाले 17 हजार बस्तियों की समस्या — के बारे में उन्होंने कहा कि इस मामले से निपटने के लिए अगले दो महीनों में एक नई योजना शुरू की जाएगी और योजना पर युद्ध स्तर पर काम किया जाएगा।
इस अवसर पर पेयजल तथा स्वच्छता मंत्रालय के सचिव पंकज जैन ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने व्यक्तिगत रूप से अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में गंदगी पर अप्रसन्नता व्यक्त की थी और 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को हासिल करने की सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 2015 तक देश के प्रत्येक स्कूल में लड़के, लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय होंगे। जैन ने कहा कि आईईसी प्रत्येक ग्रामीण बस्ती में शौचालय बनाने का संदेश फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। उन्होंने कॉर्पोरेट जगत से इस उद्देश्य के लिए सहयोग देने की अपील की।
जाने-माने वैज्ञानिक डॉ आरए माशेलकर ने कहा कि नये विचार केवल विचार नहीं रहने चाहिए बल्कि उन्हें भारत को आगे बढ़ाने के लिए व्यवहार में लाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गति, स्तर और सतत क्रम तीन ऐसे विचार हैं जिनको अमल में लाकर ग्रामीण भारत की तस्वीर बदली जा सकती है। डॉ माशेलकर ने कहा कि भारतीय समस्याओं को भारत के संदर्भ में समाधान की आवश्यकता है, न कि पश्चिमी नक़ल की।
इससे पहले पेय जल और स्वच्छता के प्रभारी राज्यों के मंत्रियों की कल हुई बैठक में राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम की राष्ट्रीय स्तर प्रगति की समीक्षा की गई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2019 तक के स्वच्छ भारत मिशन को कारगर और तेजी से अमल में लाने की नीति तय की गई।
पेय जल स्वच्छता मंत्रालय द्वारा आयोजित समीक्षा बैठक में 12वीं पंचवर्षीय योजना के पहले वर्ष में शुरू किए गए कथित निर्मल भारत अभियान और इसकी असफलता के कारणों का जायज़ा लिया गया।
ग्रामीण विकास कार्यक्रम के 64 वर्ष बीत जाने के बावजूद देश की 60% जनसंख्या खुले मे शौच करती है। इसके कारण हैं — शौचालयों का नहीं होना, पानी के अभाव या अपर्याप्त प्रौद्योगिकी के कारण संचालन और रख-रखाव का अभाव। इनकी वजह से ग्रामीण शौचालयों की उपयोगिता पर सवाल खड़े होते हैं। पिछले 60 वर्ष में 2001 की जनगणना के अनुसार 32% ग्रामीण परिवारों और एनएसएसओ के 2013 के आंकड़ों के अनुसार 40% परिवारों में ग्रामीण शौचालय हैं। 2011-12 से पहले प्रतिवर्ष 1.2 करोड़ शौचालय बनाने थे जो आंकड़ा अब प्रतिवर्ष 50 लाख हो गया है। राज्यों के 2012-13 के सर्वेक्षण के अनुसार देश में 17.19 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 11.11 करोड़ परिवारों में शौचालय नहीं हैं। 8.84 करोड़ परिवार इसके लिए प्रोत्साहन के पात्र हैं। दो करोड़ से ज्यादा परिवारों को वित्तीय प्रोत्साहन के अंतर्गत सब्सिडी दी गई थी लेकिन उनके शौचालय काम नहीं कर रहे हैं।
पत्र सूचना कार्यालय
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