वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा गुजरात की आर्थिक प्रगति पर सवाल उठाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते, लेकिन ऐसा लगता है कि उनका मंत्रालय ही उनकी इस राय से इत्तफाक नहीं रखता। औद्योगिक नीति व संवर्द्धन विभाग (डीआइपीपी) अपनी एक रिपोर्ट में पर्यावरण संबंधी मुद्दों और ज़मीन अधिग्रहण के मामले को सुलझाने में देश का अव्वल राज्य माना है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी चुनावी सभाओं में गुजरात सरकार की तरफ़ से उद्योग जगत को दी जाने वाली ज़मीन को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं।
डीआइपीपी ने प्रमुख आइटी कंपनी अक्सेंचर के साथ मिलकर एक अध्ययन किया है, जिसे अभी सार्वजनिक किया गया है। इसमें भारत में कारोबार करने के माहौल पर विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्टो का अध्ययन किया गया है। इन एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर राज्यों को कारोबार करने की छह प्रमुख ज़रूरतों के आधार पर बेहतरीन राज्य घोषित किया गया है। इसमें गुजरात और महाराष्ट्र दो ऐसे राज्य हैं जिन्हें दो-दो क्षेत्रों में बेहतरीन राज्य माना गया है। गुजरात को ज़मीन व भवन संबंधी मंज़ूरी देने में प्रथम स्थान दिया गया है। साथ ही पर्यावरण मंज़ूरी देने के गुजरात के तौर तरीक़े को भी अन्य सभी राज्यों से बेहतर माना गया है। पर्यावरण मंजूरी देने के मामले में राज्य ने जिस तरह से ई-गवर्नेस का इस्तेमाल किया है, उसकी सराहना की गई है।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि राज्य की ज़मीन अधिग्रहण की नीति की कांग्रेस की तरफ से लगातार निंदा की जा रही है। लेकिन इस रिपोर्ट में इसे काफी दूरदर्शी बताया गया है। उद्योग जगत के लिए ज़मीन चिन्हित करने से लेकर उसका आवंटन करने और विवादों को निपटाने के फ़ॉर्मुले को अन्य राज्यों से बेहतर माना गया है। राहुल गांधी बार-बार आरोप लगाते हैं कि गुजरात में टॉफ़ी की क़ीमत पर ज़मीन उद्योग जगत को दी जाती है। वे गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार पर किसानों से ज़मीन छीनकर कंपनियों की देने का भी लगातार आरोप लगा रहे हैं। लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक ज़मीन अधिग्रहण से प्रभावित हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की व्यवस्था इस राज्य में की गई है। यही वजह है कि वर्ष 2008-09 के अंतराल में 285 हेक्टेयर ज़मीन आवंटित की गई थी। जबकि वर्ष 2009-10 में 1,564 हेक्टेयर और वर्ष 2010-11 में 907 हेक्टेयर औद्योगिक उद्देश्य से दिए गए हैं।
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