बिहार के गया में लोगों ने ईसाईयों की ओर से आयोजित प्रार्थना सभा में जाना शुरू कर दिया और फिर धीरे-धीरे पूरी बस्ती के लोगों ने धर्म परिवर्तन कर लिया। बस्ती में रहने वाले 25 हिंदू परिवारों ने सहर्ष ईसाई पंथ अपना लिया और अब वे इस पंथ का ही पालन कर रहे हैं। पिछले साल बस्ती में रहने वाली महिला केवला देवी के बेटे की तबीयत अचानक खराब हो गई थी। बेटे को कई डॉक्टरों से दिखाने के बाद वो थक चुकी थी। किसी ने उसे बताया कि ईसाई पंथ के किसी के पास चली जाओ।
इसके बाद ईसाई पंथ के कई लोग अंधविश्वास की मारी बस्ती पहुँचे और उसके घर में प्रार्थना की और उसके बेटे को नीर दिया, जिससे वह स्वस्थ हो गया। ये देख खास बस्ती के अन्य परिवारों में भी ईसाई पंथ के प्रति रुचि बढ़ती गई। इस घटना के बाद लोग अपनी परेशानी को लेकर उनके पास जाने लगे। उनकी परेशानी कथित तौर पर दूर भी होने लगी।
बस्ती के पास स्थित वाजिदपुर गांव में किसी के घर में हर रविवार को ईसाई पंथ के लोगों द्वारा प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता था। उसी प्रार्थना सभा में बस्ती के सभी महिला-पुरुष शामिल होने गए और हिन्दू धर्म को त्याग कर ईसाई पंथ को अपना लिया है।
अंधविश्वास की मारी महिलाएँ बताती हैं कि ईसाई पंथ में महिला सिंदूर नहीं लगाती हैं, सो उन्होंने भी सिंदूर लगाना बंद कर दिया। जब वे प्रार्थना सभा में जाती हैं तो स्नान कर बिना श्रृंगार और सिंदूर के जाती हैं। अन्य दिन वे सिंदूर लगाती हैं। उन्होंने कहा कि किसी ने लालच देकर या जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य नहीं किया है। उन्होंने स्वेच्छा से हिंदू धर्म को छोड़कर ईसाई पंथ को अपनाया है।
महिलाओं ने कहा कि अब हिंदू देवी-देवताओं पर विश्वास नहीं रहा, इसलिए पूजा-पाठ भी बंद कर दी है। धर्म परिवर्तन कर चुके पुरुष मनोज मांझी ने बताया कि ऐसे भी महादलित होने के कारण हिंदू मंदिरों में जाने पर रोक था। लेकिन ईसाई पंथ में ऐसा कुछ नहीं है। पहले भी मंदिर में पूजा-पाठ नहीं करते थे, अब भी नहीं करते है।
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